यह एक कटु सत्य है श्री तारकेश्वर चक्रवर्ती जी के दृढ़ निश्चय के कारण बैंको मे पेंशन लागू हो सकी वरना तो बाकी सभी मौन थे और इस उपकार को बैंककर्मी कभी भूल नही सकते पर अफसोस कुछ स्वार्थी और पदलोलुप व्यक्तियों ने उनके इस नेक कार्य को जमींदोज करने में कोई कसर नही छोड़ी।
श्री तारकेश्वर चक्रवर्ती जी द्वारा जनरल सेक्रेटरी पद का परित्याग करने के बाद जो लोग एआईबीईए में नोका के खेवनहार बने। उन्होंने 1993 के settlement के Clause 6- व 12 को न केवल बदल दिया बल्कि उसमे 1616- 1684 DA मर्जर जैसा गैरकानूनी समझौता लागू कर दिया। इस पर भी उनका मन नही भरा तो कई और कुठाराघात भी कर दिए ताकि पेंशनर वर्ग की कमर पूरी तरह से टूट जाय।
ईस DA मर्जर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद भी सही से कम्यूटेशन का पेमेंट ना करना, 100% DA से Pre Nov 2002 Retirees को भुगतान से वंचित करना , *फैमिली पेंशन और पेंशन का अपडेशन ना करना, स्टाफ वेलफेयर फंड में से 25% राशि Retirees के ऊपर खर्च ना होना , रिजाईनीज, और सीआरएस रिटायरीस को पेंशन ना देना और हर बात पर लिटिगेशन करना आईबीए की आदत में शामिल है ,स्पेशल पे पर मेडिकल तथा पेंशन फंड में क्या घपले कर रहे हैं इसकी कोई भी सूचना ना देना , हाईकोर्ट के आदेशों को ना मानना और जो लोग पेंशन लेने से वंचित रह गए हैं उनको पेंशन देने से इनकार करना और रिटायरीज की वेलफेयर स्कीम को और उनकी शिकायतों को हल करने के लिए कोई भी, किसी तरह के , फोरम गठन को इंकार करना होना,यह कहना कि "there is no contractual relationship between banks & Retirres" वास्तव में यूनियन की नरात्मकता व टोटल फैलियर को दर्शाता है ।
रिटायरीज का ध्यान सुप्रीम कोर्ट आदेश सिविल अपील 1123/ 2015 की ओर दिलाया जाता है, जिसमें उन्होंने नियामक बिंदुओं को पुनः पुनर्स्थापित किया है कि "पेंशन रिवीजन और पे रिवीजन आर इंसेपरेबल" पेंशन 50% सैलेरी / पे से कम नही हो सकती है, एम्पलाई को किसी भी दशा में यह कह कर के पैसे की कमी है या अन्य कोई दिक्कत है पेंशन अपडेशन को इनकार नहीं किया जा सकता है
आज विडंबना यह है कि कुछ नाकारा यूनियंस, उनके कुछ चम्मचे और स्वयं महासचिव भी कुछ करने को तैयार नहीं है, और पेंशनर्स यूनियन को सही मायनों में केवल एक नचनिया या डुगडुगी सा बना कर रख दिया है, एक नेता बजाता है,बाकी नाचते है.... यही कारण है कि यह मसला इंडिविजुअल लेवल पर कुछ एक्टिविस्ट और AIBRWA जैसी कुछ संस्थानों ने फिलहाल उठाया हुआ है और भविष्य में इनके संघर्ष से कुछ ना कुछ बड़ा प्राप्त होने की रिटायरीज को बड़ी आशाएं है वर्ना यू ऍफ़ यू ए और आई बी ए ने तो पिछले लगभग ढाई दशको से तो रिटायर्ड वर्ग को महज़ धोखा देने के सिवाय और कुछ नही किया है | कर्मचारी और रिटायर्ड वर्ग कि नुमायन्दगी करने वाली बडी यूनियन UFBU की तो हमेशा से नकारात्मक भूमिका रही है और शायद यही भविष्य में भी बनी रहने वाली है। ---- R K Verma,